Main Menu इतिहास मध्यकालीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास विश्व का इतिहास जनरल नॉलेज झारखण्ड

ब्रिटिशो ने भारतीयों पर अत्याचार करने के साथ-साथ भारतीयों के लिये कई अच्छे काम भी किये। उन्होंने रेलरोड और टेलीफोन का निर्माण किया और व्यापार, कानून और पानी की सुविधाओ को भी विकसित किया था। इनके द्वारा किये गए इन कार्यो परिणाम भारत के विकास और समृद्धि में हुआ था। उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस का निर्माण किया और कई जरुरी नियम और कानून भी बनवाए। उन्होंने भारत में विधवा महिलाओ को जलाने की प्रथा पर भी रोक लगायी थी।

 – काले और लाल बर्तन की संस्कृति (१३००–१००० ई.पू.)

far more Hamburger icon An icon accustomed to depict a menu that can be toggled by interacting with this icon.

सामग्री पर जाएँ मुख्य मेन्यू मुख्य मेन्यू

सामाजिक क्रान्ति के दस्तावेज (गूगल पुस्तक)

आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे 'यूलिथ- सभ्यता' कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर 'चिलियन' सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था।

प्राचीन भारत का इतिहास पाषाण युग से लेकर इस्लामी आक्रमणों तक है। इस्लामी आक्रमण के बाद भारत में मध्यकालीन भारत की शरुआत हो जाती है। प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम

‘तारुण्य और सौंदर्य से युक्त, सुवर्णहार, ताँबूल, पुष्प आदि से सुशोभित स्त्री तब तक अपने प्रियतम् से मिलने नहीं जाती, जब तक कि वह दशपुर के बने पट्टमय (रेशम) वस्त्रों के जोड़े को नहीं धारण करती। इस प्रकार स्पर्श करने में कोमल, विभिन्न रंगों से चित्रित, नयनाभिराम रेशमी वस्त्रों से संपूर्ण पृथ्वीतल अलंकृत है।’

विस्तार से जानकारी हेतु देखें उपयोग की शर्तें

धार्मिक साहित्य का उद्देश्य मुख्यतया अपने धर्म के सिद्धांतों का उपदेश देना था, इसलिए उनसे राजनीतिक गतिविधियों पर कम प्रकाश पड़ता है। राजनैतिक इतिहास-संबंधी जानकारी की दृष्टि से धर्मेतर साहित्य अधिक उपयोगी हैं।

अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तंभलेख और गुहालेख। शिलालेखों और स्तंभ लेखों को दो उपश्रेणियों में रखा जाता है। चौदह शिलालेख सिलसिलेवार हैं, जिनको ‘चतुर्दश शिलालेख’ कहा जाता है। ये शिलालेख शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा, कालसी, गिरनार, सोपारा, धौली और जौगढ़ में मिले हैं। कुछ फुटकर शिलालेख असंबद्ध रूप में हैं और संक्षिप्त हैं। शायद इसीलिए उन्हें ‘लघु शिलालेख’ कहा जाता है। इस प्रकार के शिलालेख रूपनाथ, सासाराम, बैराट, मास्की, सिद्धपुर, जटिंगरामेश्वर और ब्रह्मगिरि में पाये गये हैं। एक अभिलेख, जो हैदराबाद में मास्की नामक स्थान पर स्थित है, में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त गुजर्रा तथा पानगुड्इया (मध्य प्रदेश) से प्राप्त लेखों में भी अशोक का नाम मिलता है। अन्य अभिलेखों में उसको देवताओं का प्रिय ‘प्रियदर्शी’ राजा कहा गया है। अशोक के अधिकांश अभिलेख मुख्यतः ब्राह्यी में हैं जिससे भारत की हिंदी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती और मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़ आदि भाषाओं की लिपियों का विकास हुआ। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पाये गये अशोक के कुछ अभिलेख खरोष्ठी तथा आरमेइक लिपि में हैं। ‘खरोष्ठी लिपि’ फारसी की भाँति दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी।

लॉर्ड विलियम बेंटिक ने here गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया

सिंधुघाटी सभ्यता में कला एवं धार्मिक जीवन 

भारतीय ऐतिहासिक स्मारकों का ढेर मुगलों के शासनकाल के दौरान बनाया गया और भारतीय इतिहास का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया। यहां मुगल साम्राज्य के तहत लोकप्रिय कला और वास्तुकला का एक सारांश है:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *